
मेरी खामोशी को मेरी कमजोरी मत समझना,
यह तो बस ढूंढ रही मिल जाए कोई अपना,
इस खामोशी के पीछे छिपी है मेरे मन की उमंगे,
जो ढूंढती है वो नजरे जिसमें हो प्रेम की तरंगें,
जो बिन कारण मुझे अपने पास बुलाए,
विषयों के बिना भी कुछ मीठे बोल गुनगुनाए,
खेले मेरे साथ बचपन के खेल,
कभी आंख में चोली, कभी पकड़म–पकड़ाई, तो कभी बिना डिब्बों की रेल,
उम्र चाहे जो भी हो प्रेम और भावों का ऐसा हो मेल,
खिल उठे मेरा बचपन तोड़ के बंधनों की जेल,
फिर मुड़कर मैं पीछे कभी ना देखूंगा,
उम्मीद और हिम्मत का दामन साथ लेकर में चलूंगा,
खुशी–खुशी में सीख जाऊंगा मैं पढ़ना लिखना,
गलती तो पहला कदम है सीढ़ी में ज्ञान की चढ़ना,
बस यही उम्मीद मुझ जैसे बच्चे किया करते हैं,
नादान नजरों से हम इंसान को परख लिया करते हैं,
करने की जब भी कोई कोशिश हम किया करते हैं,
बच्चा कहकर हमको सब नजरअंदाज कर दिया करते हैं,
हम भी हुनर और कौशल में सबको मात दे सकते हैं,
बचपन से बस सही लोगों की तलाश में रहा करते हैं,
जो उम्र और कद से ना करें हमारी पहचान,
देख पाए हमारे भीतर जिज्ञासा की खान,
मेरी खामोशी का बस यही है कारण,
विषयों के अंकाें में घुटता है मेरा दम,
छोड़कर यह काबिलियत के झूठे मापदंड,
शिक्षा को बनाए हम खुशियों का घर ।।







