
पेड़ो का भी प्रेम अमर है,
बस्ते इसमे इतने घर है,
जड़ से लेकर ऊंची डाल तक,
डाली-डाली पात-पात पर,
कीट-पतंगो और पंछियों ने,
इसमें अपना घर बसाया,
खुशियों को है मिल बांटकर,
सुन्दर एक संसार रचाया,
मिलकर रहते एक साथ सब,
भेदभाव बिना रहते है संग
पूछते नहीं वो धर्म–जात किसी की,
हरते दुख और कष्ट सभी की,
कुछ उनसे है घर बसाते,
कुछ उनसे है घर बनाते हैं,
कुछ को वो है भोजन देते,
कुछ की वो तृष्णा हर लेते,
सभी प्राणियो को है जीवन देते,
इसका कभी ना अभिमान वो करते,
जलती धूप सहकर भी वो,
सभी को शीतल छांव है देते,
प्रेम का यह त्याग कर्म है,
पेड़ो के यह धर्म अमर है ।।
