एक दिन खंडाला बाजार रत्नागिरी में , मैं बस का इंतजार कर रही थी। आसपास बाजार जाने के लिए लोगों की हलचल थी, लेकिन अचानक एक दृश्य ने मुझे ठहरने पर मजबूर कर दिया – एक बाप अपनी फटी हुई चप्पल में अपनी बेटे की मुस्कान ढूंढ रहा था।
“ हे चप्पल नव्हे, एक बापाचो प्रेम असलो “( यह चप्पल नहीं एक पिता का प्यार है!)

“ फटी हुई चप्पल “ – उसकी एडी बाहर झांक रही थी, पट्टा एक तरफ से खुला था, और उंगलियां मानो स्वतंत्रता दिवस मना रही हो ! लेकिन फिर भी, वह आदमी उसे पहने हुए इत्मीनान से चल रहा था, जैसे यह कोई मामूली बात हो।
एक सवाल, मेरा मुझसे ? मैने अपने मन में सोचा, “ अरे इतनी टूटी चप्पल क्यों पहनी है? क्या ये आदमी नई चप्पल नही खरीद सकता?”
मैने हिम्मत जुटाई और पूछ ही लिया“ काका, तुमची चप्पल फाटलेली, नवीन घ्यायची नाही का?” ( काका आपकी चप्पल फटी हुई है, नई नही खरीदनी?)
काका हंसकर बोले ……… बाळा, नवीन चप्पल घ्यायला पैशे आहेत, पण तो बघ ना…… माझा लेक! त्याला नवी स्कूल बूट पाहिजे होते!” ( बेटा नई चप्पल खरीदने के लिए पैसे है, लेकिन देखो, मेरा बेटा! उसे नए स्कूल के जूते चाइए थे! )
उसके शब्द मेरे कानों में गूंज गए। उसने अपने बेटे के लिए नई चीज खरीदने के लिए खुद पुरानी, टूटी हुई चप्पल पहनना मंजूर किया था।
हमारे भी पापा ऐसा करते है ना? खुद कुछ नही लेते पर हमे सबकुछ देने की कोशिश करते है।
“त्याग “- जो दिखता नहीं, पर महसूस होता है
हम रोज एसे माता पिता को देखते है, जो अपने बच्चो के लिए खुद की इच्छाएं मार देते है। यह कोई बड़ी कहानी नही, कोई हीरो की दास्तान नही, लेकिन असली बलिदान यही है।
“ फटी चप्पल में एक पिता का प्यार और त्याग छिपा होता हैं, जो कभी दिखता नहीं, लेकिन हमेशा महसूस किया जाता है! “

क्या हम अपने जीवन की छोटी छोटी खुशियों को महत्व देते है या उन्हें नजर अंदाज कर देते है?
