पंचायतों में महिलाओं का आरक्षण _
ग्रामीण क्षेत्रों के लिए पंचायती राज अधिनियम-1992 महिलाओं के लिए एक वरदान के रूप में उभरी है इसमें कोई संदेह नहीं है कि भारत में इस कानून को लागू होने से महिलाओं की स्थिति में काफी सुधार हुआ है।
संविधान के 73वें संशोधन1992 में महिलाओं को पंचायतों में एक तिहाई (33%) आरक्षण दिया गया है। वर्तमान समय में कई राज्यों ने आरक्षण की इस सीमा को बढ़ाकर 50% तक दिया है। यह एक महत्वपूर्ण कारण है जिससे पंचायती राज व्यवस्था में महिलाओं की भूमिका और भागीदारी बढ़ी है।
एक ओर जहाँ ग्रामीण क्षेत्र की महिलाए घर में रहने के लिए विवश थी, उन्हें पंचायतों में जाने का बहुत कम अधिकार था। उन्हें अपनी बात रखने के लिए अपने पति, पिता या अन्य रिश्तेदारों पर निर्भर रहना पड़ता था। महिलाओं की अनेकों समस्या और चुनौतियों पर वह खुद आगे आ नहीं बोल पाती थीं। लेकिन आज का समाज बदल रहा है और उन्हें इसके लिए अधिकार भी मिल रहा है।
पहली बार 1959 में जब पंचायतों के विकास के लिए बलवंत राय मेहता समिति का गठन किया गया तो इस समिति ने ग्राम स्तर पर निर्णय लेने मे महिलाओं की भागीदारी की बात की। उसके बाद समय-समय पर महिलाओं की शक्तिकरण के लिए सरकार ने कई कदम उठाए हैं। पंचायती राज अधिनियम-1992 ग्रामीण भारत की महिलाओं के सशक्तिकरण में मील का पत्थर साबित हुआ है।
दहलीज पार कर ग्राम पंचायत में दस्तक
महिला आरक्षण से हो रहा है महिलाओं की स्थिति में बदलाव_
73वें संविधान के बाद पंचायती राज में महिला आरक्षण से महिलाओं की स्थिति में निरन्तर बदलाव आ रहा है। इससे पंचायती राज संस्थाओं में महिलाओं की भागीदारी बढ़ी है। आज देश में 2.5 लाख पंचायतों में लगभग 32 लाख प्रतिनिधि चुन कर आ रहे हैं। इनमें से 14 लाख से भी अधिक महिलाएं है। जो कुल निर्वाचित सदस्यों का 46.14 प्रतिशत है। पंचायती राज के माध्यम से अब लाखों महिलाएं राजनीति में हिस्सा ले रही हैं।
- बालिका शिक्षा के प्रति सोच सकारात्मक हुई है और इसके प्रति लोगों की रूचि बढ़ रही है।
- ग्राम स्तरों पर अलग-अलग संगठनों में संस्थात्मक स्तरों जैसे :विद्यालय प्रबंधन समिति, वार्ड, मुखिया, सरपंच में प्रतिभागिता महिलाओं का हुआ है |
- आरक्षण के कारण महिलाएं अपने अधिकारों व अवसरों का लाभ उठा रही है।
- पुरूषों के साथ कदम के कदम मिलाकर विकास कार्यों में सहभागिता बढ़ रही है।
- २०%(अनुमानित) महिलाओं में आत्मनिर्भरता और आत्म-सम्मान का विकास हुआ है।
- पंचायत के कार्यों पर सवाल करना तथा जरूरत के अनुसार संगठन के लिए मांग करना |
- SC/ST और अन्य पिछड़े वर्ग की महिलाओं को आरक्षण के कारण राजनैतिक क्षेत्रों में कदम रखने का अवसर प्राप्त हुआ है।
- जिला व राज्य से बाहर जाने के अवसर में आगे आना |
कौशलों को उभारने के लिए किये गये कार्य
कहा जा सकता है कि आरक्षण की व्यवस्था के कारण पंचायती राज में ही नहीं बल्कि देश के सभी वर्गों की महिलाओं को सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक क्षेत्रों में कार्य करने का अवसर प्राप्त हुआ है।
पंचायती राज व्यवस्था के माध्यम से महिलाओं का जीवन बहुत प्रभावित हुआ है। सही मायने में पंचायती राज ने महिलाओं को समाज का एक विशेष सदस्य बनने का मौका दिया है।
महिलाओं की बढ़ी भागीदारी
इस में कोई दो राय नहीं की पंचायती राज संस्थाओं में महिलाओं की भागीदारी बढ़ी है, किंतु क्या वास्तव में ग्रामीण शासन का नियंत्रण महिलाओं को मिला या महिला सशक्तीकरण के लक्ष्य के हम पास आ पाएं है ?
पुरुष प्रधान समाज में प्रतिनिधि बनने मात्र से क्या समाज के स्तर पर महिलाओं का सशक्तीकरण हो पाया है? विभिन्न रिपोर्ट एवं रिसर्च की मानें तो महिलाओं के सशक्तीकरण एवं जन प्रतिनिधि मे उनकी हिस्सेदारी के बीच कोई सीधा संबंध नहीं दिख रहा । जन प्रतिनिधि बनने के बाद भी केवल 5-10 फीसदी महिलाएं ही घर की दहलीज पार कर अपनी राजनैतिक भागीदारी दे रही हैं और स्वयं की पहचान को स्थापित कर पा रही है ।
अमेरिका की उप राष्ट्रपति कमला हैरिस ने संयुक्त राष्ट्र में अपने पहले संबोधन में कहा था कि “किसी भी देश में लोकतंत्र का स्तर महिलाओं के सशक्तीकरण पर निर्भर करता है। केवल चुनाव जीतने से कुछ नहीं होता, निर्णय लेने की शक्ति मिली या नहीं, उस शक्ति के सदुपयोग करने के लिए किस तरह का वातावरण मिल रहा है, ये महत्पूर्ण है।”
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महिला आरक्षण की चुनौतियां
भारतीय समाज में महिलाओं को अभी और आगे आने की जरूरत हैं। विभिन्न अधिकार और आरक्षण प्राप्त होने के बावजूद, आज पंचायतों में महिलाओं की जगह उनके पति, पुत्र, पिता या रिश्तेदार उनकी भूमिका निभाते नजर आते हैं। अधिकतर निर्वाचित महिलाओं को निर्वाचक सदस्य होने के विषय में पूर्ण जानकारी भी नहीं है। ग्राम सभा की बैठकों में वे मौन दर्शक बनी रहती है, और उनके रिश्तेदार ही पंचायत के कामों का संचालन करते हैं। महिलाएं वही करती हैं जो उनके पति और रिश्तेदार कहते हैं। अगर उनसे पंचायतों के बारे में कुछ पूछा जाता है तो वह एक ही वाक्य में अपनी बात समाप्त कर देती हैं।
अब भी कुछ परिवार महिलाओं को पंचायतों में काम करने की स्वीकृति नहीं देते हैं, क्योंकि वे महिला का स्थान घर में समझते हैं, पंचायत में नहीं।अब भी महिला सरपंचो के पति ही उनके काम संभालते दिख जाएंगे। इस कारण उन्हें ‘सरपंच पति’ या ‘प्रधान पति’ जैसे शब्दों से नवाजा जाता है।
संक्षेप में कहें, तो पंचायती राज व्यवस्था से ग्रामीण महिलाओं की स्थिति में काफी सुधार तो आया है। परन्तु अभी भी पंचायती राज में महिलाओं की भूमिका इतनी सशक्त नहीं हुई हैं कि इस व्यवस्था में अपनी जोरदार भूमिका निभा सके। इसके लिए महिलाओं को भी निडर होकर आगे आना ही होगा होगा।
महिलाओं को पंचायत के क्षेत्र में बढाने व सशक्त करने के लिए क्या-क्या कर सकते है
- महिला सभा का आयोजन और जागरूक करना |
- ग्राम पंचायत विकास योजना(GPDP)10% महिलाओं के लिए मूल है इसकी जागरूकता करना,अन्य कौशलों की मांग पंचायत से करना|
- गावं के विकास में महिलाओं को शामिल करना |
- सशक्त पंचायतों का भ्रमण एवम इसके माध्यम से क्षमता वर्धन
- पहले से मौजूद महिला संगठनों एवम स्वयं सहायता समूहों को मजबूत करना |
- किशोरी समूहों को ग्राम स्तर पर मजबूत करना, जहां वो पंचायत से जुड़ी योजनाओं की समझ और उनमें भागीदारी को समझ सकें|
- ग्राम कचहरी एवम अन्य माध्यम से महिलाओं से जुड़ी हिंसा एवम इससे जुड़े कानूनों की समझ बनाना |
- आर्थिक सशक्तिकरण के लिए ग्राम स्तर पर आजीविका से जुड़े कार्यक्रमों का प्रशिक्षण एवम समूह के द्वारा ऐसे कार्यों को करने के लिए प्रोत्साहन |
- अधिक से अधिक महिलाओं के ग्राम स्तर पर मौजूद संस्था जैसे स्कूल प्रबंधन समिति, वार्ड, मुखिया, सरपंच में प्रतिभागिता |
- हर प्रतिनिधि अपने कार्यों की जिम्मेदारी की समझ |
