एक सवेरा, चिड़िया कि चहचहाहट, सूरज कि रोशनी का यूँ आँखों को जगाना और गर्ल्स हास्टल से निकलती हुई ल़डकियों कि खिलखिलाती हसी ठिठोली ने मुझे जगाया। दिनचर्या के काम करते-करते मेरी नजर एक पर्ची पर पडी, जैसे मैंने उस पर्ची को खोला, तो उसमे सबसे ऊपर लिखा था पोस्ट ऑफिस जाना है। यह पढ़ते ही मुझे पिछले दस दिन याद आगए की कैसे में एक पार्सल को पोस्ट करने की कोशिश कर रही हूँ। कभी गवर्नमेंट का अवकाश होता है, तो कभी मुझे काम होने की वजह से में पोस्ट ऑफिस नहीं पहुँच पाती हूँ, तो कभी पोस्ट ऑफिस में भीड़ होती हैं या तो पोस्ट ऑफिस समय से पहले बंद हो जाता हैं।
यह सब सोचते हुए जब में अपने सहकर्मी और साथ रहने वाली के कमरे में गई तो वह भी मेरी तरफ देखते हुए कह रही थी, साक्षी हमे आज किसी भी तरह आज इसे पोस्ट करना ही होगा। एक दूसरे की तरफ देखते हुए जो भीनी-भीनी सी हसी में जो वार्तालाप हम दोनों ने किया वो कुछ एसा था कि या तो पार्सल आज पोस्ट होगा या तो फिर हम इस पार्सल को अपनी मंजिल तक हम खुद पहुचा कर आएँगे।
हम दोनों ने आज तो ठाण ही लिया था कि आज तो आर या पार की लड़ाई लड़ के ही आएँगे, सवेरे-सवेरे के सारे काम करते हुए हमें काफी समय हो चला था। जैसे ही हमें समय का एहसास हुआ हम दोनों अफरातफरी करते हुए अगले पल ऑटो पकडने के लिए खड़े थे। वहाँ खड़े होकर मैंने मानो पूरे इतिहास को अपने आँखों के सामने गुज़रते हुए देख लिया हो। जितनी भी अविष्कार मनुष्यों के आवक जवान के लिए बनाए गए होंगे आज इस रास्ते पर मौजूद थे, धूल उड़ा-उड़ा कर मुझे एक प्राचीन मूर्ति में तब्दील बनानें पर तुले हुए थे। सारे अविष्कारों और तब्दीलियां के बीच सिर्फ एक अविष्कार हमें पिछले पौन घंटे से नहीं दिखा उसका नाम था ऑटो। बस मेरे मूर्ति बनने के पहले हमें एक ऑटो दिखा और जब हमने उससे गाँव तक पहुचने की बात की तो हमें उसने एसे देखा जैसे मानो हमने उसकी ऑटो की तौहीन की हैं, जिसे उसने हमारी सारी जमा पूंजी जितने पैसे मांग कर पूरी की।
जब हमने ऑटो से भार देखा तो हमें बड़े-बड़े अक्षरों में कुछ लिखा हुआ दिखा जिसे समझना मेरे बस कि बात ना थी। जॉकी मेरी सहकर्मी कर्नाटक से है और वह कन्नड जानती हैं तो हमने पता चल गया कि यह पोस्ट ऑफिस है।
हमारे अंदर पहुचते हमने देखा कि लोग एक कतार में खड़े हैं। यह कतार एक तना हैं और उसमे से फूटती कयी टहनियां। उस कतार में कितने लोग हैं यह अंदाजा लगाना लग-भग नामुमकिन था। दायें तरफ कुर्सियों का एक जमघट था जीन पर बैठे हुए कयी बुजुर्ग अपनी बारी आने का इंतजार कर रहे थे। बायीं तरफ दो छोटे बच्चे जिनकी माँ कभी कभी इस पेड़ रूपी कतार से टूट कर अपने पत्ती रूपी बच्चों को अपने टहनियों में फंसा कर फिर इस कतार का हिस्सा बन रही थी। यह सब देखते हुए मेरा ध्यान गया कि चार काउन्टर वाले इस ऑफिस में सिर्फ एक काउन्टर चालू है और वहां बैठा हुआ आदमी जो तमाम पोस्ट ऑफिस के काम अकेला ही कर रहा है, और खरगोश और कछुए की रेस में कछुआ बन कर वह रेस जितना चाहते थे। मैंने घड़ी की तरफ देखा तो उसमे बारहा बज रहे थे, और हमने इससे 10 मिनिट का काम समझ कर सबसे बड़ी भूल की थी। मेरी सहकर्मी ने हालत को देखते हुए कहा साक्षी हम बारी-बारी अपना योगदान देते है इस जंग में, मैंने सहमती देते हुए अपने लिए एक जगह बनाई और बैठ गई।
काफी देर मोबाइल से अपनी बातें कहते हुए मैंने जब ऊपर देखा तो में देखते ही रह गई कि इस पेड़ रूपी कतार को यह काउन्टर पर बैठा हुआ नेक बंदा कुछ नहीं होने देगा। मैंने फिर इन्हीं विचारो के साथ अपने मोबाइल से वार्तालाप प्रारंभ किया और फिर थोड़ी देर बाद ना समझ आने वाली चीला चोट से मेरा ध्यान भंग हुआ तो मैंने देखा कि वह काउन्टर पर बैठा हुआ नेक बंदा किसी बुजुर्ग अम्मा से लड़ते हुए पूरा चक्कर लगा कर भार आया और इस पेड़ की सारी बिखरती हुई टहनियों को पकड़ के तने के सीध में बाँध दिया। उसकी नेक दिली का मुझे सम्मान था, पर मेरी आंखों ने जो देखा उससे में बर्दाश्त ना कर पायी उसकी इस नेक दिली ने मेरी सहकर्मी को कतार पीछे और काफी पीछे कर दिया था। और इन्हीं सब को देख कर मैंने घड़ी की तरफ एसे देखा जैसे बाज अपना शिकार और ये देख कर मुझे लगा कि शिकार करना अब मुश्किल हुए जा रहा है। फिर मैंने अपनी सहकर्मी से कहा कि अब में इस टहनि का हिस्सा बनना चाहती हूँ।
उस कतार में खड़े खड़े मैंने उन छोटे बच्चों से दोस्ती कर ली थी ताकि यह कभी ना खत्म होने वाला सफर तो हस्ते खेलते गुजर जाये, और में कभी अपने मोबाइल से अपनी आँखों पर अत्याचार करते हुए तो कहीं उस बच्चे के बचपन समझते हुए, और इन्ही सब से आंखे बचाते अपने सहकर्मि से आँखों में वार्तालाप करते हुए कि आज ये आर पार की लड़ाई में हमें कहीं शिकस्त तो नहीं मिलेगी। इन्ही सारी आंख-मिचौली के सील सिले को विराम देते हुए एक आवाज ने मेरा ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया, और इस आवाज ने हमारी आर पार की लड़ाई को हारते हुए कहा कि “ivattina time mugdide, naale banni ” (आज का समय समाप्त कल आना) यह भाषा जिसका मुझे ग्यान ना था वो भी मुझसे कह रही थी ki निराशा हाथ लगी हैं। फिर भी मैंने अपने सहकर्मी की और देखा और उसकी हताशा भरी नजरों ने बता दिया कि यह मेरे हाथ में पिछले दो घंटों से जो पार्सल हैं मेरे साथ ही घर जाएगा। मैं और मेरी सहकर्मी फिर अपने ऊपर हस्ते हुए वो अविष्कार ढूँढने ने के लिए निकल गए जिसका नाम ऑटो था,जो शायद हमें 1 घंटे के पहले नहीं मिलने वाला था। कल से ये सफर फिर शुरू होगा यह सोचते हुए हम इंतजार करने लगे।

