‘कहते है ना की अगर मन में करने की प्रतिभा हो तो सब मुश्किलें एक साथ आती है?’
“ मुझे बचपन से अपने समुदाय के लिए कुछ करने की प्रतिभा थी, मैं हमेशा से यही चाहती थी की इसके विकल्प मैं कैसे ढूंढ़ सकूँ साथ ही लोगों का सहयोग कैसे इनमें मिल पाए|”
इसी सपने के साथ मैने अपने कदम को आगे बढ़ाया और हमारे रास्ते में जो भी विकल्प हमारे उम्मीद को छूने जैसे थे उसे मैंने चुना |
शीतल पाल कहती है की आज मैं 30 साल की हूं और मन में कई सारे लोगों को जगाने जैसी प्रतिभा को रखती हूं उसी के समक्ष में,मैं आगे बढ़ उन दर्पण के लिए अपने आप को सभी के साथ उपस्थित करती हूं|
मैं एक ऐसे गांव(लिंगा) से हूं जहां से तहसील करीबन 12 से 15 किलोमीटर की दूरी पर है |साथ ही मुझे अपने पहचान में यह बताने में बहुत गर्व होता है कि मैं उसी गावं की एक बहु होने के साथ-साथ एक समाजसेवी भी हूं, जो अपने समाज के लिए कार्य कर रही हूं। मेरा नाम शीतल पाल है मैं करीबन 2018 से एक संस्था (हकदर्शक) जो कि समाज में सरकारी योजनायें लोगों तक पहुँच पाए के लिए काम करती हूं, यह काम करने के लिए कोई मुझे जोर नहीं करता कि मैं इस काम को करूं| मुझे खुशी मिलती है,मैं इस वजह से इस तरह के कामों को करती हूं|
यह सपना मेरा उस समय से बना था जब मैं अपने गांव में रहती थी और सभी बच्चों को घर से रास्ते की ओर जाते देखती थी तो मुझे लगता था काश इनके साथ रहने का मौका मुझे भी मिल पाता इसी मौके की तलाश में न जाने कितने विकल्प की तालाश की उसी विकल्प में से एक विकल्प यह था: जब मुझे आंगनबाड़ी में एक सेविका के तौर पर बच्चों के साथ काम करने का मौका मिला तो मैं उन कामों को हाँ करने की सहमति जताई| मैं लगभग 4 साल स्कूल में बच्चों के साथ खेल-कूद करने के साथ खिचड़ी बनाने का काम करते थी| जहां मैं उन कार्यों के साथ-साथ खुद की शिक्षण को भी धीमी गति से चालू रखी थी उसी के समक्ष मैं जब सातवीं में थी तो मैंने सिलाई सिखा जहाँ मैं यह सोचती थी कि कोई एक जरिया मिलेगा जहां मैं अपने पहचान को बना पाऊंगी | इसके लिए मुझे जो सारे प्रयत्न करने होंगे तो मैं उसे करूंगी। मेरी शादी आज से करीबन १५ साल पहले हुई थी तो मेरे परिवार में मुझे मिलाकर 5 लोग थे| उस समय मैं रसोई के काम करने के बाद ऐसे ही बैठी रहती थी|
मुझे अवलोकन के माध्यम से यह महसूस होता था कि हमारे घर की स्थिति अच्छी नहीं है कभी दिन के चूल्हे जलते तो कभी रात के बंद हो जाते थे | मैं सोचते रहती थी कि हमारे अंदर के जो हुनर है उसे मैं लोगों को कैसे दिखाऊं | इसी सूझ के साथ आँख के सामने महिलाओं की झुण्ड दिखी| मन में कई सारे सवाल आये पर उससे मैं आगे निकल गयी और महिलाओं को जा बताई “मैं सिलाई जानती हूँ और ब्लाउज,पेटीकोट,अन्य तरह के खोल(ढकना) को सिलती हूँ|”
करीबन 10 से 15 दिन के बाद हमारे पास कुछ कपड़े आने लगे और मैं घर में उन लोगों की कपड़े सिलती और कुछ पैसे उन के माध्यम से मिलता महीने की 2000 में शुरुआत से अंत के तौर पर हमें मिलने लगे, जहां मैं उन पैसों से अपने मिस्टर(पति) को आर्थिक सहयोग के साधन के साथ खड़ी रहती थी| मुझे यह भी लगता था कि मैं एक महिला होने के नाते अपने खर्च भी निकाल रही हूं। हमारे मन में बार-बार ख्याल आते थे कि आज अपने को खाना मिल रहा है तो दूसरे को क्यों नहीं मिलना चाहिए | यही शब्द मुझे आगे चलकर परेशान करती थी मुझे बार-बार यह लगता था कि मैं दूसरों के लिए क्या कर दूँ!हमारा गावं जो की २ हजार की आबादी के साथ चल रहा था और हमारे आसपास की स्थिति ऐसी थी कि मैं चाहती थी कि वह लोग भी हमारे जैसे कम से कम खाना तो खा पाए|
मैं जिस संस्था के साथ काम करती थी उसका नाम ‘हकदर्शक’ है | जहाँ जो भी योजनाएं हमारे ग्रामीण स्तर तक नहीं पहुंचती है उन्हीं में किन साधनों के माध्यम से उन तक पहुंचा पाए इसके लिए गांव के हर एक दरवाजे के पास जा जाकर उनको उनके योजनाओं के बारे में बताते है ,उस समय खुद को यह लगता था कि मैं आगे कुछ कर लुऊंगी लेकिन मैं दसवीं पास थी तो कहीं ना कहीं हमारे व्यवसाय के क्षेत्र भी कम हो रहे थे बार-बार हमें जब मासिक अनुदान दिया जाता तो था और हमारे कम रहते थे, बार-बार यह सुनने को मिलता था कि आपने कम किया इसका हमारा दो ही कारण रहता था कि शिक्षा और प्रौद्योगिकी की जानकारी उतनी नहीं है जितनी होनी चाहिए इस काम को लेकर मैंने भी प्रण लिया आज के बाद मैं भी कुछ अलग करूंगी और इसी सोच के साथ में आगे बढ़ गई। मैं अभी लाइफ स्किल एजुकेशन के माध्यम से 17 नंबर(आगे पढ़ने को लेकर प्रोत्साहित करती है) का फॉर्म भरा जहां में उसी के माध्यम से आज 12वीं विज्ञान से कर रही हूं| साथ ही हर दिन मैं 15 से 12 किलोमीटर अपने तालुका में जाकर टाइपिंग के कोर्स को भी कर रही हूं ताकि हमारे आगे भविष्य में हमें खुद के जानकारी के साथ-साथ हमें वह हमारी पहचान की चीजें प्राप्त हो पाए|
मैं अपने घर में अपने 11 वर्ष के बेटे नैतिक पाल और 9 साल की बेटी सृष्टि पाल और हमारे मिस्टर नरेंद्र पाल(राज मिस्त्री) के साथ रहती हूं| जहां हमारे बेटे नैतिक पाल छठवीं कक्षा में पढ़ते हैं और हमारी बेटी चौथी कक्षा में पढ़ती है मुझे कभी कभी बुरा भी लगता है कि हमारे बच्चे बड़े हो रहे हैं और उनके कंप्यूटर सीखने और पढ़ने के उम्र में मैं कर रही हूं लेकिन कहीं ना कहीं मुझे यह देख कर खुशी हो रही है कि हमारे बच्चे प्रेरित होंगे की पढ़ाई कभी खत्म नहीं होता वह इसे भी अपनी उम्र में वह जारी रखेंगे। मैं करीबन हर दिन कंप्यूटर सीखने के लिए दूर तालुका में जाती हूं और 12:00 बजे की बस से में तहसील चली जाती हूं 12:00 से 5:00 में उधर ही रहती हूं हमारा कंप्यूटर 12:00 से 3:00 ही रहता है लेकिन मैं उसके बाद मैं तहसील स्तर पर जो सारे काम होते हैं वह मैं अपने गांव में बातचीत कर महिला और जिनको योजनाएं प्राप्त करने के विभिन्न कागजात बनाने होते हैं उनको मैं उस समय तहसील में बुलाकर उनके साथ में काम करती हूं| मेरे दोनों हाथों की जंजीरे इस तरह के कामों से जुड़ी हुई है जहां मैं अपने अलग काम के लिए समय विभिन्न तरह से निकाल पाती हूं। 5:00 बजे के बाद से जब मैं वापस आती हूं तो मुझे घर के काम साफ सफाई,साँझ-बाती करने के साथ-साथ खाना बनाते ही हमारे 8:00 बज जाते हैं फिर हमारी विज्ञान की ऑनलाइन क्लास होती है उसे मैं पढ़ती हूं| 9:00 बजे के बाद ही हम लोग खाना खाते हैं |खाना खाने के तुरंत बाद हमें कुछ- कुछ कागजातों के काम तकनिकी के माध्यम से रहता है| जिसे मैं पूरा करती हूँ, तभी पूरे दिन में किस तरह के कार्य को मैं है वो दिख पाता है| मैं अधिकतर इस काम को करके ही करीबन 12:00 बजे सोती हूं |सुबह 5:00 बजे उठती हूं मेरी इस प्रकार के व्यस्त दिनचर्या से मैं दुःख ना हो करके खुश हूं क्योंकि आज मैं वह स्थान ले पाई हूं जिसके लिए मैं अपने बचपन के जिंदगी से लेकर अभी तक के प्रयासों को करते जा रही थी | मैं जो हूं वाकई में मैं अंदर से हूं उसके लिए अपनी एक पहचान को बना कर पा रही हूं मैं इसके लिए हमेशा से हमारे बने हमसफर को धन्यवाद देना चाहती हूं कि वह हमें हर घड़ी में साथ देते हैं।

2 replies on “‘मैं जो हूँ वो दिखना चाहती हूँ’”
वेरी नाइस आप इसी तरह से मेहनत करते रहो आगे बढ़ते रहो मेहनत से कभी हार नहीं मानना चाहिए मुझे खुशी हुई आपका पोस्ट पढ़कर
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Thank-you
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