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तराजू के दो छोर : नारी और नेतृत्व

ख्याल न चाहते हुए भी उधर ले जाती है,

जिधर मैं जाना फिजूल समझती हूँ |

स्त्री, यह एक शब्द है जो प्रकृति में कोमलता, सौम्यता और ममता का बोध करवाती है। जो मीठे वचन बोलती है, जिसकी आवाज में मधुरता है और जो हर किसी को स्नेहिल वाणी से व्यवहार करती है। स्त्री एक ऐसा शब्द है, जिससे उनके कार्यों को सीमांकित किया जाता है। घर की एक लट्टू की समान जो चलती- फिरती तो बहुत है लेकिन वह एक डोरे पर निर्भर है। मन में बनते बिगड़ते अनगिनत सपने अपने आस- पास लिए घूमती फिरती, वह स्त्री |

वर्तमान में स्त्री का सफर ललकार भरा जरूर है, पर उसमें चुनौतियों से लड़ने की शक्ति भी आ चुकी है। खुद के आत्मविश्वास के बल पर दुनिया में नई पहचान बना रही है। स्त्री के छोटे लांघते कदम आज आसमान की ऊंचाइयों को छू रहे हैं।

आज के दशकों में भी स्त्री चाहे कुछ भी कर ले लेकिन जब खुद की बारी आती है कि उन्हें किस प्रकार के जीवन यात्रा आगे देखनी है तो बात आती है पुरुष की, स्त्री को अपने जीवन यात्रा में निर्णय लेने का अधिकार आज भी नहीं है वह कहीं ना कहीं पुरुषों पर चला जाता है या फिर फूंक- फूंक जीवन यात्रा के निर्णय को लिया जाता है। आज के दशक में हर क्षेत्र में महिलाएं- पुरुषों के साथ बढ़-चढ़कर भाग ले रहे हैं। इसके बावजूद भी आज स्त्री की जीवन यात्रा पुरुष पर निर्भर करती है। स्त्री की सहजता, सहनशीलता, कोमलता और संकोच के स्वभाव को निर्बलता का शब्द दिया जाता है। जबकि देखा जाए तो महिला पुरुष से किसी तरह कमजोर नहीं है।

कुछ आकड़ें हैं जो इस स्थिति को दर्शाते हैं:

  • लगभग 59% महिलायें आर्थिक योजनाएं स्वतंत्र होकर नहीं बनाती 
  • शादीशुदा महिलाओं मे यह स्थिति  89% है 
  • वर्ष 2022 की लैंगिक खाई सूची मे भारत का स्थान 146 देशों मे 135 वां है 

Source: https://www.tataaia.com/about-us/media-center/2022/indian-women-are-still-financially-dependent.html

स्त्री को आगे बढ़ने में भी लोकतंत्र, राजतंत्र, कुलीन तंत्र और अधिनायकवादी का सामना करना पड़ रहा है। हर एक प्रकार के विश्वव्यापी कौशलों में स्त्री का अव्वल आना इस बात को इंगित करता है की स्त्री के छोटे लांघते कदम अब हर हिस्सों में झंडा गाड़ेगी। देश के हर एक कस्बों को नेकनीयत बनाने के लिए स्त्री के साथ देश के हर एक कोने में किए जाने वाले बदलावों का नेतृत्व सौंप देना वक्त की बुलंद आवाज है। 

कुछ समय पहले जब यह एहसास होता है कि हम एक लड़की हैं और हमारी कुछ सीमाएं हैं तो बार-बार यह दिलों- दिमाग में ख्याल आते हैं की लड़की ही क्यों? नगरों और महानगरों को छोड़ दे तो गांव में अभी भी ज्यादा स्थिति नहीं बदली है आज की लड़कियों में इतनी स्वतंत्रता नहीं है कि वह अपने लिए स्वतंत्र निर्णय ले सके। एक तरह से उन्हें हर निर्णय के लिए एक बार अभिभावकों को एक नजर देखना जरूर होता है। हर कदम आगे बढ़ाने के लिए उनकी सहमति लेनी पड़ती है। बचपन से ही हमें एहसास दिलाया जाता है कि तुम एक लड़की हो और तुम्हें एक सीमित दायरे में ही रहना है उनके लिए उड़ान क्या है यह निर्णय भी उनके मां-बाप ही बनाते हैं…। गलती से अगर निर्णय हमारे हो और आगे चलकर के खतर – पटर हुई तो निर्णय और लड़की को दोष दिया जाता है। 

नगरों और महानगरों में अभी भी यह कहना सही होगा कि जब लड़कियों को होश आ जाता है और वह अपना निर्णय खुद से लेने लायक हो जाती है तो उन्हें उनके आकांक्षाओं को पूरा करने के लिए उनके माता-पिता उन्हें बेहतर शिक्षा और व्यवसाय के लिए राजी होते हैं लेकिन कहीं ना कहीं यह मानसिकता उनके परिवार अपने आसपास के लोगों और शिक्षाओं गुणों से बनाते हैं। लेकिन जब बात करें गांव की तो गांव में आज भी महिलाएं,लड़कियों की यह सीमाएं बनाई जाती है। लेकिन एक लड़की जबरन व माता पिता को अपने सपने पूरा करने के लिए मनवा लेती है तो उन्हें कई प्रकार के चुनौतियों का सामना करना पड़ता है वह बाहर जाकर शिक्षा हासिल करने के एक साथ प्रारंभिक कमजोरियां, मन में हमेशा हावी करती है। जिससे वह कोई ठोस निर्णय नहीं ले पाती है और दब्बू व विचारू प्रवृत्ति की बन जाती है।

चाहे हम बात कर ले राजनीति, पर्यावरण, स्वास्थ्य, शिक्षा व खेलकूद की महिलाएं हर क्षेत्र में आगे आई है और यह उनकी भूमिका की ही देन है कि आज दुनिया भर में हर क्षेत्र में स्त्रियों का डंका बज रहा है।। बदलते मौसम की चपेटों में किस प्रकार स्त्री की कहानी है | ना चाहते हुए भी यह विचार आ जाते है।

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